पंजाबी बाग़ महिला वेलफेयर सोसाइटी ने मनाया तीज का त्यौहार

जालंधर(NIN NEWS): सावन में अब न झूले दिखते हैं नही सखियों के साथ खिलखिलाती युवतियां और नवविवाहिताएं। 25-30 साल पहले तक सावन में लड़कियां व नवविवाहिताएं खुली जगह पर रस्सी का झूला (पींग) बनाकर खूब झूला झूलती थी। मंदिरों में भी झूले का विशेष प्रबंध किया जाता था। हालांकि आधुनिकता का रंग चढ़ने के साथ अब झूले विलुप्त होते जा रहे हैं। कुछ एक धार्मिक स्थलों पर ही यह परंपरा निभाई जा रही है।

पहले महिलाएं व लड़कियां झूले पर बैठ कर कई तरह के पारंपरिक गीतों को गाकर झूमती थी। सावन आने के साथ ही बाग बगीचा तथा अन्य खुली जगह में वृक्षों में रस्सियां बांध कर महिलाएं झूला बना लेती थी। महिलाओं व लड़कियों के झुंड झूले का आनंद उठाते थे।

मंदिरों में भी तीज पर झूले लगाए जाते थे। महिलाएं व लड़कियां धार्मिक गीतों को गाकर ठाकुर जी का आशीर्वाद लेती थी। वही अपनी धार्मिक परंपरा को भी निभाती है। सावन में शहरों तथा गांव में झूला लेती हुई महिलाएं और लड़कियां दिखाई देती थी। अब कुछेक धार्मिक तथा शैक्षणिक संस्थानों में इस तरह के प्रोग्राम दिखाई देते हैं। इसी को मुख्य रखते जालंधर के पंजाबी बाग़ में महिला वेलफेयर सोसाइटी ने स्वान में तीज का त्यौहार मनाया

पंजाबी बाग़ महिला वेलफेयर सोसाइटी के प्रधान गुरजीत कौर रोम्मी ने कहा कि पहले गलियों-मोहल्लों में झूले लगाने का रिवाज होता था। लेकिन अब यह समाप्त हो चुका है। आज हर कोई अपने मोबाइल और लैपटाप में व्यस्त है। वह स्कूल अध्यापिका हैं। कई स्कूलों में सावन में झूला खुद बनाने की परंपरा है। हालांकि अब इसे भी केवल निभाया ही जाता है। रोम्मी ने कहा की भारत में इसकी सभ्यता ख़तम होती दिख रही है ऊपर से भी पंजाब में लोग अपना संस्कृति को भूल विदेशी संस्कृति को अपना शुरू कर चुके है, पंजाब की मुटियार सावन में अपने माईके आ कर अपने घरो में अपने सखियों सहेलियों के साथ मिल के सावन महीने में झूले झूलते थे, सावन में बोलिया डाल लोकगीत गायन कर गिद्दा डाल तीज का त्यौहार मानते थे, रोमी ने अपने पंजाब के लोगो से अपील की की अपने सभ्याचार को बचाया जाये और लोगो को अपने सभ्याचार के साथ जोड़ना और जुड़े रहने को कहा इस मौके पंजाबी बाग़ महिला वेलफेयर सोसाइटी के सभी सदस्य एवं और महिलाये मौजूद थी