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महानगर के WEST हल्के में ही कुछ एक FAKEBOOK पत्रकारों की भरमार क्यों है? PART-3

जालंधर(ब्यूरो): जैसा कि आप सब जानते हैं कि महानगर में कुछ एक FAKEBOOK पत्रकारों के कहर से महानगर की जनता त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है।

आज की इसी कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ FAKEBOOK पत्रकारों की तादाद महानगर के WEST हल्के में ही देखने को मिलती है  ऐसा क्या कारण है? जिसका कारण बहुत ही दिलचस्प तथा हास्यप्रद है!

आज की यह खबर पढ़ कर आपको हंसी तो आएगी और आप यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या सच में ऐसे लोग पत्रकारिता में आकर सही व सच्चे पत्रकारों को कर रहे हैं बदनाम?

चलिए आइए आपको बताते हैं कि असल में महानगर के WEST हल्के में ही इन FAKEBOOK पत्रकारों की तादाद इतनी क्यों है और कैसे बड़ी। जैसा कि हमने आपको अपनी पिछली कड़ी में बताया था कि कोरोना काल के दौरान यह FAKEBOOK पत्रकारों की गिनती बड़ी और यह गिनती जालंधर के वेस्ट हल्के मे ही बड़ी क्योंकि सूत्रों की माने तो जितने भी स्वेभु पत्रकारों की जन्म लॉकडाउन के दौरान हुआ है उनका पत्रकारिता व पत्रकार होने से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। क्योंकि इनमें से ज्यादातर बने FAKEBOOK पत्रकारों को पत्रकारिता की कोई जानकारी नहीं है और ना ही इन्हें पत्रकारिता का कोई अनुभव है।

क्योंकि सूत्र बताते हैं कि इनमें से कुछ एक ऐसे हैं जो किसी समय में कंपनी की टॉफियां बेचते थे और लोगों की माने तो जो लोग टॉफियाँ व चिप्स बेचते-बेचते पत्रकार बने हैं, आज भी कई कंपनियों के पैसे के देन दार हैं।

कुछ एक इनमें से जूतों का काम करते हुए कई लोगों से लाखों की ठगी कर पत्रकारिता घुस गए। कुछ एक तो साईकलों का काम करते करते पत्रकार बन चुके हैं।

वेस्ट हल्के में एक कुछ एक FAKEBOOK पत्रकारो द्वारा सिनेमा हॉल की टिकटों की तरह या यूं कहें कि साइकिल स्टैंड की पार्किंग की टिकटों की तरह अपने निजी चैनलो के कार्ड बांट रखे हैं फिर चाहे कोई पेंचर लगाने वाला हो, चाहे सब्जी बेचने वाला हो,चाहे फल बेचने वाला हो, चाहे प्रॉपर्टी डीलर हो, चाहे पतंग बेचने वाला हो, फैक्ट्री चलाने वाला हो,फैक्ट्री में काम करने वाला हो, करियाने वाला हो। यही कारण है कि महानगर के वेस्ट हलके में FAKEBOOK पत्रकारों की तादाद इतनी ज्यादा है।

यह अत्यंत दुख व आश्चर्य करने वाली बात है कि यह कुछ FAKEBOOK पत्रकारों ने नैतिकता व इंसानियत की सभी हदें पार करते हुए पत्रकारिता को ब्लैक मेलिंग तथा वसूली का धंधा बना रखा है क्योंकि यह लोग पत्रकारिता व पत्रकारों को हथियार बनाकर थानों में व जिला प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव बनाकर आम जनता को अपना शिकार बना कर पैसे ऐंठते हैं।

यहां पर एक सवाल हम आपसे भी पूछना चाहते हैं क्या पत्रकारिता का उद्देश्य ऐसे काम करना है जैसे काम महानगर में कुछ FAKEBOOK पत्रकार कर रहे हैं?

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