राष्ट्रीय

गूगल मैप पर साफ क्यों नहीं दिखाई दे रही गज़ा पट्टी की सैटेलाइट इमेज?

गज़ा पट्टी की ये तस्वीर मैक्सर टेक्नोलॉजी ने मुहैया कराई है. ये तस्वीर बेहद साफ है लेकिन गूगल मैप्स पर धुंधली तस्वीर दिखाई दे रही है. (तस्वीर-AP)

गज़ा पट्टी की ये तस्वीर मैक्सर टेक्नोलॉजी ने मुहैया कराई है. ये तस्वीर बेहद साफ है लेकिन गूगल मैप्स पर धुंधली तस्वीर दिखाई दे रही है. (तस्वीर-AP)

गूगल मैप (Google Map) पर गज़ा पट्टी की सैटेलाइट इमेज बिल्कुल धंधुली दिखाई दे रही हैं. मैप पर गज़ा की तस्वीरें इतनी धुंधली हैं कि ठीक से इमारत या रास्ते नहीं देखे जा सकते.

नई दिल्ली. फलस्तीनी आतंकी संगठन हमास (Hamas) और इजरायल (Israel) के बीच बीते कई दिनों से हिंसा जारी है. इस बीच दुनिया के शोधकर्ताओं ने एक अलग ही समस्या की तरफ इशारा किया है. दरअसल गूगल मैप (Google Map) पर गज़ा पट्टी की सैटेलाइट इमेज बिल्कुल धंधुली दिखाई दे रही हैं. मैप पर गज़ा की तस्वीरें इतनी धुंधली हैं कि ठीक से इमारत या रास्ते नहीं देखे जा सकते. सामान्य तौर पर गूगल मैप की सैटेलाइट इमेज साफ होती हैं. गज़ा पट्टी दुनिया की सबसे सघन बस्तियों में शुमार की जाती है. हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर गज़ा पट्टी के मुकाबले देखा जाए तो उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयॉन्ग की तस्वीरें भी ज्यादा साफ दिखाई दे रही हैं. जबकि उत्तर कोरियाई शासक किम जोंग उन ने अपनी राजधानी को बेहद गोपनीय बना रखा है. गूगल मैप से इतर मैक्सर और प्लेनेट लैब्स जैसी सैटेलाइट कंपनियां हाई रिजोल्यूशन पिक्चर मुहैया करा रही हैं. शोधकर्ताओं ने आश्चर्य व्यक्त किया कि जब ये दोनों कंपनियां बेहतर इमेज मुहैया करा सकती हैं तो गूगल मैप्स क्यों नहीं? सीरिया की बेहतर तस्वीरें मुहैया कराई थीं बता दें गज़ा पट्टी में प्रति स्क्वायर मील के हिसाब से करीब 13 हजार लोग रहते हैं. एक एक्सपर्ट के मुताबिक-हाल के समय में सीरिया में गूगल ने बेहतर सैटेलाइट इमेज मुहैया कराई थी. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक गूगल ने कहा है-हाई रिजोल्यूशन की पिक्चर उपलब्धता के आधार पर यूजर्स को मुहैया कराई जाती हैं. हालांकि कंपनी का कहना है कि गज़ा पट्टी को लेकर हाई रिजोल्यूशन की तस्वीरें मुहैया कराने का अभी उसका कोई प्लान नहीं. यहां के लिए अभी 2016 की अस्पष्ट तस्वीरों का इस्तेमाल ही किया जा रहा है.मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच के लिए तस्वीरों का इस्तेमाल बीते सालों में सैटेलाइट इमेज का इस्तेमाल मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच में किया जाता रहा है. साल 2017 में ह्यूमन राइट्स वॉच ने प्लेनेट लैब्स के साथ करार किया था. प्लेनेट लैब्स उन देशों में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर विशेष नजर रखती है जहां पर प्रतिबंध ज्यादा हैं. जैसे म्यांमार और सीरिया. प्लेनेट लैब्स ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के गांव जलाए जाने की तस्वीरें मुहैया कराई थीं.





Source link

News India Now

News India Now is Government Registered Online Web News Portal.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Light
Dark