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मिशन पानीः जल संरक्षण में निर्णायक होगी ये तकनीक, जानें क्या है ‘गुरुजल’ कार्यक्रम

नई दिल्ली. संयुक्त राष्ट्र की पानी पर केंद्रित संस्था यूएन-वाटर के चेयरमैन और इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चर के प्रेसिडेंट गिल्बर्ट एफ हाउंगबो का कहना है कि इंसान की ज्यादातर समस्याएं इसलिए हैं, क्योंकि हम पानी का मोल नहीं समझते हैं, और कई बार तो बिल्कुल नहीं समझते हैं. वैज्ञानिक लगातार इस बात को दोहरा रहे हैं कि वायरस संक्रमण से बचाव के लिए साफ सफाई रखें, सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करें और हाथों को बार-बार साफ करते रहें. वैश्विक स्तर पर कोहराम मचाने वाले अदृश्य दुश्मन से युवा, बुजुर्ग सहित तमाम उम्र वर्ग के लोग हर संभव लड़ाई लड़ रहे हैं, जहां तक संभव है, लोग सोशल डिस्टैंसिंग, स्व अनुशासन जैसे लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं और इनमें से कुछ लकी लोग वैक्सीन का टीका भी लगवा रहे हैं. दुर्भाग्य रूप से भारत के लिए ताजे पानी की उपलब्धताा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है और नियमित तौर पर हाथ धोने की गाइडलाइन ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है. अनुमान के मुताबिक भारत में 50 फीसदी लोगों के पास पीने के साफ पानी की उपलब्धता नहीं है. हम इस बारे में कम बात कर रहे हैं, क्योंकि भारत इससे बड़ी समस्या कोरोना महामारी से जूझ रहा है. केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक भारत में 3000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता है, जबकि उपलब्धता 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर ही है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि पानी की हर बूंद को संजोया जाए. मनरेगा के तहत पानी के संरक्षण पर काफी जोर दिया जा रहा है और जल शक्ति अभियान (2019 में शुरुआत) के तहत व्यापक कार्यक्रमों की शुरुआत हुई है. इसमें वर्षा जल संरक्षण, नदी के पुर्नविकास के साथ पीने के पानी की सप्लाई भी शामिल है. कोरोना संकट के दौरान शहरों से गांव लौटे लोगों को लॉकडाउन के दौरान तालाब खोदने, नहर ठीक करने और गांव में सिंचाई के साधनों को विकसित करने का काम मिला है. महामारी के समय लोगों को रोजगार दे पाना आम के आम गुठलियों के दाम की तरह है. इस चुनौतीपूर्ण समय में देश के हर कोने से सफलता की कहानियां सामने आ रही हैं. शहर से लौटे कामगारों ने खेती को पूर्णकालिक पेशे के रूप में स्वीकार कर लिया है. ग्रामीण जीवन में रम गए हैं. उनका उद्देश्य अब जैविक उत्पादों के लिए व्याकुल शहरी लोगों के लिए अनाज और सब्जी का उत्पादन करना है. लेकिन, देश की आबादी और भूगोल को देखें तो ऐसी कहानियां सागर में एक बूंद की तरह हैं. कई अध्ययनों में इस बात पर काफी जोर दिया गया है कि भारतीय लोग खेती के मामले में पानी के उपयोग को लेकर कुशल नहीं हैं. अच्छी बात ये है कि परंपरागत खेती को चैलेंज किया जा रहा है, जैसे पंजाब, हरियाणा और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में धान की खेती को लेकर नए प्रयोग हो रहे हैं, नए वैरिएंट की फसलों में पानी की जरूरत बिल्कुल नहीं होती. नए प्रयोगों के परिणामों के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन जिस तरह के प्रयास हो रहे हैं, वे सही दिशा में जा रहे हैं. आवश्यकता इस बात कि है कि सरकार ज्यादा पारदर्शी तरीके से इन प्रयोगों के परिणाम को साझा करें और उन एनजीओ और थिंक टैंक के विचारों को सुनें, जो इस तरह की कोशिशें लंबे समय से कर रहे हैं. सोलर पंप के जरिए सिंचाई की ड्रिप तकनीक ने साल 2000 के बाद से भारत में हॉर्टिकल्चर की तस्वीर बदल दी है. किसानों ने ना केवल इस तकनीक को अपनाया है, बल्कि चावल और गेंहू की खेती को छोड़कर फल और सब्जियों की खेती करने लगे हैं. इस तकनीक से भूमिगत जल बचाने में काफी सफलता मिली है. परंपरागत रूप से पहले भूमिगत जल संसाधनों से ही खेती होती थी और इस तरह भूमिगत जल का खूब दोहन होता. सोलर ने बिजली और डीजल की लागत पर बचत के साथ घर की समृद्धि में योगदान को बढ़ा दिया है. अब, स्मार्ट किसान घर और खेत में उपयोग के लिए सोलर के फोल्डेबल मॉड्यूल का उपयोग कर रहे हैं और जरूरतमंद किसानों की भी मदद कर रहे हैं. धरातल पर इस तरह के प्रयास अब ज्यादा दिखने लगे हैं और लोगों द्वारा इन्हें अपनाने की रफ्तार कहीं ज्यादा तेज है. हालांकि भारत में सीवेज सिस्टम को पूरी तरह बदलने की जरूरत है, सीधे शब्दों में कहें तो ग्रामीण भारत में सीवेज सिस्टम है ही नहीं. तीन तालाब व्यवस्था या पौधा आधारित फाइटो रेमेडिएशन सोल्यूशन इसमें निर्णायक भूमिका निभा सकता है और खेती के लिए ग्रे वॉटर की सप्लाई कर सकता है. किसानों के लिए यह एक वरदान की तरह होगा, जब सिंचाई के लिए उनके पास पानी की उपलब्धता ज्यादा होगी. इससे ग्रामीण इलाकों में साफ सफाई रखने में भी मदद मिलेगी, क्योंकि सड़कों पर गंदा पानी बहता नहीं दिखेगा.
केंद्र सरकार की नई जल नीति पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के मामले में ज्यादा स्पष्ट है. इससे बहुत सारे एनजीओ लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए आगे आ रहे हैं और जमीन पर काम कर रहे हैं, लेकिन ऐसे प्रयासों को व्यापक पैमाने पर फैलाने की आवश्यकता है. इस बारे में ‘गुरुजल’ कार्यक्रम एक सकारात्मक उदाहरण है, इस कार्यक्रम को गुरुग्राम प्रशासन एक सोसायटी के जरिए चला रहा है और फाइटो रेमेडिएशन सोल्यूशन की निर्माता कंपनियां भी सीएसआर कार्यक्रम के तहत इसमें सहयोग कर रही हैं. गुरुग्राम प्रशासन की ये सोसायटी तकनीक के सहारे ग्रामीण इलाकों में तालाबों को जिंदा कर रही है और पानी के उचित प्रबंधन के प्रति लोगों को जागरूक भी कर रही है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि संबंधित साझेदार आगे आए और देश के दूर दराज के हिस्सों में जाकर लोगों को जागरूक करें. कॉरपोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. अगर हमें पानी का उचित प्रबंधन करना है, तो ग्रामीण क्षेत्रों पर बराबर ध्यान देना होगा. इन क्षेत्रों में खेती को देखते हुए पानी का उपयोग बहुत ज्यादा है. समय आ गया है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम भूमिगत जल को बचाएं और ग्रामीण इलाकों में रह रहे अपने प्रियजनों को उचित मार्गदर्शन, जानकारी और तकनीक को धरातल पर अमलीजामा पहनाने में सहयोग दें. बने रहिए हमारे साथ, क्योंकि पानी से जुड़ी समस्या पर हम आपको लगातार नई तकनीक और समाधान से अवगत कराते रहेंगे, जिन्हें धरातल पर लागू किया जा सकता है. मिशन पानी के साथ क्लाइमेट रियलिटी इंडिया और अन्य साझेदार जल संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं.

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