नई दिल्ली. बाल संरक्षण गृहों और बाल केयर संस्थाओं में बच्चों के बीच कोरोना के फैलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है. शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी ने एक अभूतपूर्व स्थिति पैदा कर दी है और संवेदनशील बच्चों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. साथ ही कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं, जो माता-पिता की मौत से अनाथ हो गए हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को ऐसे बच्चों की जानकारी पोर्टल पर अपलोड करने का आदेश दिया, जो मार्च 2020 के बाद से अनाथ हुए हैं. शुक्रवार को सुनवाई के दौरान ASG ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि बालस्वराज नाम का पोर्टल सभी संबंधित जिला अधिकारियों द्वारा संचालित किया जा रहा है और उन्हें ऐसे बच्चों की पहचान के लिए पासवर्ड दिया गया है जो अनाथ हुए हैं. इसके बाद कोर्ट ने जिला अधिकारियों को ऐसे सभी बच्चों का विवरण शनिवार शाम तक पोर्टल पर अपलोड करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि केंद्र और और राज्य के वकील को इस मामले में नवीनतम जानकारी मिलनी चाहिए.
बच्चों की बुनियादी जरूरतों का पूरा करने का आदेश कोर्ट ने ऐसे बच्चों की अधिकारों की रक्षा और बिना सरकारी आदेश के उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का आदेश दिया. राज्यों को निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि आप ऐसे बच्चों की पीड़ा को समझेंगे और तुरंत स्थिति का समाधान करेंगे. कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने संबंधित अधिकारियों को ऐसे बच्चों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों के बारे में पहले ही निर्देश जारी किए हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता को कोरोना में खो दिया है.एमिकस क्यूरी के गौरव अग्रवाल ने कहा कि NCPCR ने अप्रैल में अवैध रूप से बाल अनाथ को गोद लेने का संज्ञान लिया है, जिनके कि माता-पिता कोविड की वजह से खत्म हो चुके हैं. उन बच्चों के लिए नियम बनाया गया है, वेब पोर्टल पर बच्चों के पुनर्वास के तरीके के बारे में आंकड़ें तैयार करने चहिए, दूसरा बाल न्याय अधिनियम की धारा 14 के तहत ध्यान रखा जाए. गौरव अग्रवाल ने कहा जुवेनाइल जस्टिस समिति के पास एक बच्चे को पालक देखभाल देने का अधिकार है, इसके बारे में केंद्र द्वारा 2016 में नियम पारित किया गया था, अगर 60 दिनों तक परित्याग के बाद कोई देखभाल करने वाला नहीं है तो CARA अधिग्रहण कर लेगा.

महाराष्ट्र और यूपी में टास्क फोर्स का गठन
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने पीठ को बताया कि उन्होंने ऐसे बच्चों की पहचान करने के लिए पहले से ही डिस्ट्रिक टास्क फोर्स का गठन किया हुआ है. कोर्ट ने इस मामले पर राज्य सरकारों को रविवार तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा है.